लग गई किसकी नज़र मेरे चमन को एै मियां।
फूल तो खिलते हैं लेकिन हैं नदारद तितलियां।
चीखिऐ-चिल्लाइऐ बस और चुप हो जाइऐ,
सारे अफ़सर सो रहे हैं खोल कर आखें यहां।
हर गली में जश्न का माहौल हो या रंजो-ग़म,
अब नहीं तैयार कोई खोल दे जो खिड़कियां।
मजबूर गाजियाबादी
छंगी