बैंक की कतारें कह रही हैं कि सर्वर डाउन है?
सुलगते सरोकार------------मजबूर गाजियाबादी       जब से रिज़र्वबैक ने पंजाब महाराष्ट्र बैंक के अपने ग्राहकों को धन निकासी पर सशर्त रोक लगाई है उससे पूरे देश के लोगों में एक बेचैनी देखी जा रही है। एक तो नोटबन्दी ने पहले ही बैंक की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया था। उसके बाद अनेक बैंक भी आरोपों के घेरे मे…
ब्रान्डेड कंपनियां जेनरिक दवाओं को बड़ा बाज़ार कभी बनने नही देंगी
सुलगते सरोकार----------मजबूर गाजियाबादी      सरकार ने गरीबों को सस्ती और अच्छी दवाई उपलब्ध कराने के लिए बहुत सी जेनरिक दवाईयों की दुकानों के लाईसेन्स दिये थे। यह जनता की बहुत पुरानी मांग भी थी। आखिर फिर एैसा क्या हुआ कि वे दवाईयों की दुकानें अचानक बन्द होनी शुरू हो गईं और आज जो दुकाने चल भी रही हैं…
छंगी
लग गई किसकी नज़र मेरे चमन को एै मियां। फूल तो खिलते हैं लेकिन हैं नदारद तितलियां। चीखिऐ-चिल्लाइऐ बस और चुप हो जाइऐ, सारे अफ़सर सो रहे हैं खोल कर आखें यहां। हर गली में जश्न का माहौल हो या रंजो-ग़म, अब नहीं तैयार कोई खोल दे जो खिड़कियां। मजबूर गाजियाबादी
बस्तियां बाग़ सी लहराऐं तो घटा बोले....
मजबूर गाजियाबादी अपनी फ़ुरसत को करीने से सजाते रहिऐ। हो सके रोज ही इक पेड़ लगाते रहिऐ। जिनके अस्तित्व पर निर्भर हैं हमारी सांसें, उनकी खा़तिर भी ज़रा वक्त लगाते रहिऐ। बिन मांगे ही जो देते हों बहुत कुछ हमको, एैसे दाताओं की फैहरिस्त बढ़ाते रहिऐ। घुट के रह जाऐं न सीमेन्ट के घरौंदों में,  वर्ना झोंकों को …
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आज रिलांयस जैसे कुबेर तो साग सब्जी भी बेचने पर आमादा हैं
सुलगते सरोकार----------मजबूर गाजियाबादी बरसों पहले बाज़ारबाद की चमक ने मुगल नवाबों की आंख की रोशनी छीन कर उन्हें एैसा अंधा बना दिया था कि धीरे-धीरे सारा का सारा हिन्दुस्तान ही गुलामी की जंज़ीर में जकड़ा गया था। उन गुलामी की जंज़ीरों को काटने में कितने दिन लगे,कितनी जानें गईं इसका कोई हिसाब किताब आज किस…
कलम तेरी मुस्तैद रही तो बदलेगा संसार लिख-मजबूर गाजियाबादी
अब तो मेरे यार लिख क्या है तेरा विचार लिख कलम तेरी पहचान है प्यारे,  खुल कर तू हर बार लिख। पथराई आंखें पढ़ लेगीं, सच्चाई दमदार लिख। मानव जीवन से अब तेरा, रिश्ता क्या है यार लिख। भूखा बचपन चौराहों पर,  क्यूॅ बेचे अखबार लिख। हुक्कामों पर करे हकूमत, पायल की झंकार लिख। जो पलता हो लाशों पर , वो धर्म नही …